Nirmal Bekh Bhasker -(New)

सन् 1999 ई0 जबकि समूह सिक्ख पंथ द्वारा ‘खालसा सृजना दिवस’ मनाया जा रहा था तो सभी निर्मले संत इस समागम में शामिल होने के लिए श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की छतर-छाया तले, पाँच प्यारों की अगुवाई एवं ‘श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला’ कनखल, हरिद्वार के श्री महंत साहिब स्वामी ज्ञान देव सिंह जी की आज्ञानुसार एक विशाल नगर कीर्तन के रूप में बैसाखी के शुभ दिवस पर श्री आनन्दपुर साहिब पहुँचे। वहाँ पर संत ज्ञानी बलवंत सिंह जी ‘कोठा-गुरू’ ने मुझे ‘निर्मल पंथ बोध’ नामक ग्रंथ की एक प्रति प्रेमपूर्वक भेंट की। अपने स्वभावानुसार मैंने उसका संपूर्ण अध्ययन किया। तत्पश्चात् विचार आया कि आज के व्यस्त जीवन में इतना दीर्घ ग्रंथ पढ़ने का समय किसी के पास भी नहीं है। इस विचार से आदरणीय ज्ञानी जी से इस ग्रंथ का संक्षेप रूप तैयार करने की विनती की जिसको उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया। कुछ ही समय में उन्होंने दो छोटे ग्रंथ तैयार किये-  1 – ‘निर्मल भेख दी गौरव गाथा’ , 2 – ‘निर्मल भेख भास्कर’ जिनका विमोचन पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में 29.30 अक्तूबर 2009 को हुए सेमीनार के समय हुआ। इनकी विषय वस्तु को पढ़कर अनुभव किया गया कि इनमें से ‘निर्मल भेख भास्कर’ (जोकि एक लघु ग्रंथ है) का हिन्दी अनुवाद भी होना चाहिए ताकि हिन्दी भाषी जिज्ञासु पे्रमीजन इससे आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर सकें और श्री गुरु नानक देव जी तथा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित निर्मल सम्प्रदाय के महापुरुषों की सेवाओं का संपूर्ण जगत में प्रचार-प्रसार हो सके।

ज्ञानी बलवंत सिंह जी ‘कोठा-गुरू’ ने इस सुझाव को भी प्रसन्नता पूर्वक प्रवान कर लिया अतः इस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करने की सेवा संत ज़ैल सिंह जी ‘शास्त्री’ अमृतसर वालों को दे दी गई।

प्रस्तुत ग्रंथ से जानकारी प्राप्त होती है कि कैसे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी निर्मल सम्प्रदाय के संतों-महापुरुषों ने गुरूद्वारों की सेवा को निष्काम भाव से निभाया है। निर्मले संतों की विद्वत्ता के कारण ही समाज में सर्वधर्म-निष्ठा, गुरू-भक्ति, गुरूमत का प्रचार-प्रसार दृढ़ होता रहा। इन्होंने गुरूवाणी की टीकाएँ, इतिहास एवं कोश लिखे, अमृत संचार किया और मानव समाज को आध्यात्मिक कार्य करने की प्रेरणा दी ताकि इस महान सेवा से प्रेरित होकर जनसाधारण भी अपना जीवन निर्मल बना सके। इस सम्प्रदाय के उपकारों को सिख पंथ कभी नहीं भुला सकता।

निर्मल आश्रम, ऋषिकेश
संत जोध सिंह